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नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़िंदगी तेरी है बे-रोज़-ओ-शब-ओ-फ़र्दा-ओ-दोश
ज़िंदगी का राज़ क्या है सल्तनत क्या चीज़ है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आह ये दुनिया ये मातम-ख़ाना-ए-बरना-ओ-पीर
आदमी है किस तिलिस्म-ए-दोश-ओ-फ़र्दा में असीर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये हंगाम-ए-विदा-ए-शब है ऐ ज़ुल्मत के फ़रज़ंदो
सहर के दोश पर गुलनार परचम हम भी देखेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
वो नर्गिस-ए-सियाह-ए-नीम-बाज़, मय-कदा-ब-दोश
हज़ार मस्त रातों की जवानियाँ लिए हुए