aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम ".end"
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवाअन-गिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलिस्म
न इतनी बे-तकल्लुफ़ीकि आइना हया करे
ज़िंदगीइतनी सादा भी नहीं कि एक ब्लैक-एण्ड-वाइट टी-वी-सेट
मिल नहीं पाई कभी रुख़्सत उसेहफ़्ता-वारी यानी वो जो दा एण्ड पे एक छुट्टी
एक इम्कान-ए-ख़ुश-आइंद की ख़ातिरहाँ मैं निचुड़ती हूँ और फिर ख़ुद को सुखाती हूँ
उन में नुमू-कारी न थीवो जो मोती की सी आब आँखों में थी
तमाम ख़्वाब ब्लैक-एण्ड-वाइट होते हैंसिवाए उन के
ये मंज़र ख़ुश-आइंद तो हैं मैं इन से मगर क्यूँ डरता हूँक्यूँ इन की दिल-आवेज़ी को वहशत-नाक तसव्वुर करता हूँ
और दूसरी तरफ़ थे सभी फ़न के होशियारलेकिन इस हादसे ने किया उन को शर्मसार
उफ़ ये फैली हुई शादाब-ओ-ख़ुश-आइंद ज़मींइस पे दो-चार महल और बना लूँ तो चलूँ
अपनी धुन में बढ़ते जातेख़्वाब-ए-अस्प को एड़ लगाते
इन किताबों ने बड़ा ज़ुल्म किया है मुझ परइन में इक रम्ज़ है जिस रम्ज़ का मारा हुआ ज़ेहन
ख़ूगर-ए-पैकर-ए-महसूस थी इंसाँ की नज़रमानता फिर कोई अन-देखे ख़ुदा को क्यूँकर
कारवाँ गुज़रे हैं जिन से उसी रानाई केजिस की इन आँखों ने बे-सूद इबादत की है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँरूई की तरह उड़ जाएँगे
किसी यकजाई से अब अहद-ए-ग़ुलामी कर लोमिल्लत-ए-अहमद-ए-मुर्सिल को मक़ामी कर लो
गुज़र रहा हूँ कुछ अन-जानी रहगुज़ारों सेमुहीब साए मिरी सम्त बढ़ते आते हैं
जिस पे पहले भी कई अहद-ए-वफ़ा टूटे हैंइसी दो-राहे पे चुप-चाप खड़ा रह जाऊँ
ना इक दिन मौत आने सेमुझे अब डर नहीं लगता
''अन-कही'' से डरते होजो अभी नहीं आई उस घड़ी से डरते हो
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