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नज़्म
क्या रेनी ख़ंदक़ रन्द बड़े क्या ब्रिज कंगूरा अनमोला
गढ़ कोट रहकला तोप क़िला क्या शीशा दारू और गोला
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
गुलज़ार
नज़्म
फिर इन अज्ज़ा को घोला चश्मा-ए-हैवाँ के पानी में
मुरक्कब ने मोहब्बत नाम पाया अर्श-ए-आज़म से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हमीं ने घोंट दिया जिस के बचपने का गला
जो खाते-पीते घरों के हैं बच्चे उन को भी क्या
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
हर आन शराबें ढलती हों और ठठ हो रंग के डूबों का
इस ऐश मज़े के आलम में एक ग़ोल खड़ा महबूबों का
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जिस को सब कहते हैं हिटलर भेड़िया है भेड़िया
भेड़िये को मार दो गोली पए-अम्न-ओ-बक़ा