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नज़्म
है जो राह-ए-ज़िंदगी में पेच-ओ-ख़म का इक मक़ाम
या इमारत में है जो जाह-ओ-हशम का इक मक़ाम
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
गुल करो शमएँ बढ़ा दो मय ओ मीना ओ अयाग़
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
रास्ते में रुक के दम ले लूँ मिरी आदत नहीं
लौट कर वापस चला जाऊँ मिरी फ़ितरत नहीं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मिरे जद हाशिम-ए-आली गए ग़़ज़्ज़ा में दफ़नाए
मैं नाक़े को पिलाऊँगा मुझे वाँ तक वो ले जाए
जौन एलिया
नज़्म
लोग ज़ालिम हैं हर इक बात का तअना देंगे
बातों बातों में मिरा ज़िक्र भी ले आएँगे