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नज़्म
''चौकी आँगन में बिछी वास्ती दूल्हा के लिए''
मक्के मदीने के पाक मुसल्ले पयम्बर घर नवासे
जौन एलिया
नज़्म
वो चश्म-ए-पाक हैं क्यूँ ज़ीनत-ए-बर-गुस्तवाँ देखे
नज़र आती है जिस को मर्द-ए-ग़ाज़ी की जिगर-ताबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इक शाम जो उस को बुलवाया कुछ समझाया बेचारे ने
उस रात ये क़िस्सा पाक किया कुछ खा ही लिया दुखयारे ने
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
जिन के हंगामे अभी दरिया में सोते हैं ख़मोश
कश्ती-ए-मिस्कीन-ओ-जान-ए-पाक-ओ-दीवार-ए-यतीम