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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
इम्तिहाँ सर पर है लड़के लड़कियाँ हैं और किताब
डेट-शीट आई तो गोया आ गया यौम-उल-हिसाब
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
जब दिन ढल जाता है, सूरज धरती की ओट में हो जाता है
और भिड़ों के छत्ते जैसी भिन-भिन