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नज़्म
बंदर को सेहरा बाँध के हम दूल्हा न बनाएँगे अम्मी
अब घूँघट काढ़ बंदरिया को डोली में बिठाना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
ढूँडने उस को मैं सपने में नगरी-नगरी डोली सखी
अब के बरस फागुन में किसी से ऐसी खेली होली सखी
ज़फ़र संभली
नज़्म
वो गोया उस की ही इक पुर-नुमू डाली से निकली है
ये कड़वाहट की बातें हैं मिठास इन की न पूछो तुम