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नज़्म
मख़मूर सईदी
नज़्म
गुलशन-ए-आलम में जब तशरीफ़ लाती है बहार
रंग-ओ-बू के हुस्न क्या क्या कुछ दिखाती है बहार
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
शिद्दत-ए-दर्द-ओ-अलम से जब भी घबराता हूँ मैं
तेरे नग़्मों की घनी छाँव में आ जाता हूँ मैं
ओम प्रकाश बजाज
नज़्म
मैं जिसे कहता था घर वो आज तिफ़्ल-आबाद है
मेरी तन्हा जान है और कसरत-ए-औलाद है