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नज़्म
ख़ल्वत-ओ-जल्वत में तुम मुझ से मिली हो बार-हा
तुम ने क्या देखा नहीं मैं मुस्कुरा सकता नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उबैदुल्लाह अलीम
नज़्म
अब कहाँ वो ख़ल्वत-ए-राज़-ओ-नियाज़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़
बे-सदा ज़ेर-ए-ज़मीं हैं आह साज़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
ख़ल्वत-ए-बे-रंग को बद-रंग कर जाता है बस
रौशनाई ख़ुश्क निब टूटी हुई काग़ज़ की आँखें नम
अमीक़ हनफ़ी
नज़्म
रहज़न-ए-हुस्न को इस इश्क़ की मंज़िल से ग़रज़
ख़ूगर-ए-ख़ल्वत-ए-रंगीन को महफ़िल से ग़रज़
नियाज़ गुलबर्गवी
नज़्म
शेर की ख़ल्वत-ए-रंगीं थी परी-ख़ाना तिरा
मस्त ख़्वाबों के जज़ीरों में था काशाना तिरा
अख़्तर शीरानी
नज़्म
सुरूर-ए-सरमदी से ज़िंदगी मामूर होती थी
हमारी ख़ल्वत-ए-मासूम रश्क-ए-तूर होती थी