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नज़्म
तेरे पैराहन-ए-रंगीं की जुनूँ-ख़ेज़ महक
ख़्वाब बन बन के मिरे ज़ेहन में लहराती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कौन सी वादी में है कौन सी मंज़िल में है
इश्क़-ए-बला-ख़ेज़ का क़ाफ़िला-ए-सख़्त-जाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रुलाता है तिरा नज़्ज़ारा ऐ हिन्दोस्ताँ मुझ को
कि इबरत-ख़ेज़ है तेरा फ़साना सब फ़सानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुहव्विस ने ये पानी हस्ती-ए-नौ-ख़ेज़ पर छिड़का
गिरह खोली हुनर ने उस के गोया कार-ए-आलम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सुन कर ज़बाँ से माँ की ये फ़रियाद-ए-दर्द-ख़ेज़
उस ख़स्ता-जाँ के दिल पे चली ग़म की तेग़-ए-तेज़
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
मैं समझ भी लूँ अगर इस को मोहब्बत का जुनूँ
तुझ को इस इश्क़-ए-जुनूँ-ख़ेज़ से निस्बत क्या है
हिमायत अली शाएर
नज़्म
नुशूर वाहिदी
नज़्म
ग़म ओ हिरमाँ की यूरिश है मसाइब की घटाएँ हैं
जुनूँ की फ़ित्ना-ख़ेज़ी हुस्न की ख़ूनीं अदाएँ हैं