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नज़्म
तुम मुसव्विर का फ़ुसूँ तुम हो सुख़नवर का कमाल
तुम ख़िज़ाओं से बहुत दूर बहारों का ख़याल
बालमोहन पांडेय
नज़्म
यूसुफ़ ज़फ़र
नज़्म
उम्मतें गुलशन-ए-हस्ती में समर-चीदा भी हैं
और महरूम-ए-समर भी हैं ख़िज़ाँ-दीदा भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिरा रोना नहीं रोना है ये सारे गुलिस्ताँ का
वो गुल हूँ मैं ख़िज़ाँ हर गुल की है गोया ख़िज़ाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अदाएँ ले के आई है वो फ़ितरत के ख़ज़ानों से
जगा सकती है महफ़िल को नज़र के ताज़्यानों से