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नज़्म
फ़ज़ा-ए-इल्म-ओ-फ़न पर ये मिसाल-ए-अब्र छाई है
मज़ाक़-ए-जुस्तुजू बन कर रग-ए-दिल में समाई है
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
सुन के ये फ़रज़ंद से होती है हैरानी मुझे
''लिख दिया मिन-जुमला-ए-असबाब-ए-वीरानी मुझे''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
अब यहाँ मेरी गुज़र मुमकिन नहीं मुमकिन नहीं
किस क़दर ख़ामोश है ये आलम-ए-बे-काख़-ओ-कू