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नज़्म
हयात-ए-ना-पाएदार के मरसिए सुनाते
मिरे बदन की अमीक़ सर्दी को सर्द से सर्द-तर बनाते
अज़ीज़ तमन्नाई
नज़्म
तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुद-कुशी करेगी
जो शाख़-ए-नाज़ुक पे आशियाना बनेगा ना-पाएदार होगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
माह ओ अख़्तर हैं ख़जिल जिस से वो चिंगारी ज़रूर
इक न इक दिन आलम-ए-ज़ुल्मात में खो जाएगी
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
सरिश्क-ए-याद ना-मुम्किन सही दुनिया की आँखों में
ज़बान-ए-हाल पर इक आलम-ए-तक़दीर बाक़ी है