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नज़्म
ब-मुश्ताक़ाँ हदीस-ए-ख़्वाजा-ए-बदरौ हुनैन आवर
तसर्रुफ़-हा-ए-पिन्हानश ब-चश्म-ए-आश्कार आमद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं शहीद-ए-जुस्तुजू था यूँ सुख़न-गुस्तर हुआ
ऐ तिरी चश्म-ए-जहाँ-बीं पर वो तूफ़ाँ आश्कार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़माना आया है बे-हिजाबी का आम दीदार-ए-यार होगा
सुकूत था पर्दा-दार जिस का वो राज़ अब आश्कार होगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आश्कार उस ने किया जो ज़िंदगी का राज़ था
हिन्द को लेकिन ख़याली फ़ल्सफ़ा पर नाज़ था
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मशरिक़ी पतलूँ में थी ख़िदमत-गुज़ारी की उमंग
मग़रिबी शक्लों से शान-ए-ख़ुद-पसंदी आश्कार
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
जो राज़ कोशिश-ए-नुत्क़-ओ-ज़बाँ से खुल न सका
वो राज़ अपनी निगाहों से आश्कार किया
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
भूक के लश्कर का है रुख़ पर तिरे गर्द-ओ-ग़ुबार
अहद-ए-रज़्ज़ाक़ी के माथे पर अरक़ है आश्कार
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ख़ालिदा तू है बहिश्त-ए-तुर्कमानी की बहार
तेरी पेशानी पे नूर-ए-हुर्रियत-ए-आईना-कार
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कुछ न थे अशआ'र मुँह देखे की दी थी मैं ने दाद
वक़्त-ए-ग़ीबत दाद की तरदीद फ़रमाता हूँ मैं