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नज़्म
गिरह जो सदियों में बनने वाले हसीन रिश्तों का आश्रम है
जो आने वाले तड़पती सदियों की इब्तिदा है
वज़ीर आग़ा
नज़्म
इरफ़ान शहूद
नज़्म
आइंदा की फ़र्ज़ी इशरत के वादों से न कर बेताब हमें
कहता है ज़माना जिस को ख़ुशी आती है नज़र कमयाब हमें
अख़्तर शीरानी
नज़्म
यक़ीं अफ़राद का सरमाया-ए-तामीर-ए-मिल्लत है
यही क़ुव्वत है जो सूरत-गर-ए-तक़दीर-ए-मिल्लत है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अल्फ़ाज़ की इफ़रात होती है
मगर फिर भी, बुलंद आवाज़ पढ़िए तो बहुत ही मो'तबर लगती हैं बातें
गुलज़ार
नज़्म
मैं शहीद-ए-जुस्तुजू था यूँ सुख़न-गुस्तर हुआ
ऐ तिरी चश्म-ए-जहाँ-बीं पर वो तूफ़ाँ आश्कार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रियाज़-ए-दहर में ना-आश्ना-ए-बज़्म-ए-इशरत हूँ
ख़ुशी रोती है जिस को मैं वो महरूम-ए-मसर्रत हूँ