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नज़्म
दिल-ए-मुर्दा को हो वो जज़्बा-ए-बेताब अता
मरज़-ए-पस्ती-ए-मिल्लत का जो दरमाँ कर दे
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
जमीलुद्दीन आली
नज़्म
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
हमा-ऊस्त उस की ख़ुदी के लिए मरकज़ ऐ दोस्त
उस का नादान अना भी है मताअ'-ए-हमा-ऊस्त
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
घर में बैठे साधू बन कर अब इल्म की माला जपते हैं
ख़रगोशों के पीछे जंगल में कुत्तों को भगाना छोड़ दिया