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नज़्म
ख़ाम है जब तक तू है मिट्टी का इक अम्बार तू
पुख़्ता हो जाए तू है शमशेर-ए-बे-ज़िन्हार तू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख सागर छलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नग़्मे गाएगी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कैसे बहकी हुई नज़रों के तअय्युश के लिए
सुर्ख़ महलों में जवाँ जिस्मों के अम्बार लगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
शीराज़ के मज्ज़ूब-ए-तुनक-जाम के अफ़्कार के नीचे
तहज़ीब-ए-निगूँ-सार के आलाम के अम्बार के नीचे
नून मीम राशिद
नज़्म
मेरे बरबत के सीने में नग़्मों का दम घुट गया
तानें चीख़ों के अम्बार में दब गई हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
धूप में लहरा रही है काकुल-ए-अम्बर-सरिश्त
हो रहा है कम-सिनी का लोच जुज़्व-ए-संग-ओ-ख़िश्त
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ये शेर-ए-हाफ़िज़-ए-शीराज़, ऐ सबा! कहना
मिले जो तुझ से कहीं वो हबीब-ए-अम्बर-दस्त