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नज़्म
तुम हो आपस में ग़ज़बनाक वो आपस में रहीम
तुम ख़ता-कार ओ ख़ता-बीं वो ख़ता-पोश ओ करीम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
गाह हम बनते हैं क़ुमरी गाह वो बनते हैं बाज़
आप को मालूम क्या आपस का ये राज़-ओ-नियाज़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तुम में डाला जाएगा इक सख़्त ओ नाज़ुक तफ़रक़ा
तुम को शह दे दे के आपस में लड़ाया जाएगा