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नज़्म
अहबाब मेहर-गुस्तर असहाब रूह-परवर
दीदार कब तुम्हारा होगा हमें मयस्सर
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
और कहफ़ के ग़ार में झाँकूँ जहाँ बैठे हुए
असहाब माबूद-ए-हक़ीक़ी की इबादत में मगन हैं
सत्यपाल आनंद
नज़्म
पहले मर्ग़ूब थे दानिश-वर-ओ-चालाक असहाब
भोले-भालों पे लगी होने फ़िदा तेरे बाद
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
है मेरी ज़िंदगी अब रोज़-ओ-शब यक-मज्लिस-ए-ग़म-हा
अज़ा-हा मर्सिया-हा गिर्या-हा आशोब-ए-मातम-हा
जौन एलिया
नज़्म
कोई उस के जुनूँ का ज़मज़मा गा ही नहीं सकता
झलकती हैं मिरे अशआर में जौलानियाँ उस की