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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जहान-ए-आब-ओ-गिल से आलम-ए-जावेद की ख़ातिर
नबुव्वत साथ जिस को ले गई वो अरमुग़ाँ तू है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
चश्म-ए-दिल वा हो तो है तक़्दीर-ए-आलम बे-हिजाब
दिल में ये सुन कर बपा हंगामा-ए-मशहर हुआ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़िंदगी के मैले में ख़्वाहिशों के रेले में
तुम से क्या कहें जानाँ इस क़दर झमेले में
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
کبھي اے نوجواں مسلم! تدبر بھي کيا تو نے
وہ کيا گردوں تھا تو جس کا ہے اک ٹوٹا ہوا تارا
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इस्लाम के इस बुत-ख़ाने में असनाम भी हैं और आज़र भी
तहज़ीब के इस मय-ख़ाने में शमशीर भी है और साग़र भी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अब वो आँखों के शगूफ़े हैं न चेहरों के गुलाब
एक मनहूस उदासी है कि मिटती ही नहीं
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
हुक्मराँ दिल पर रहे सदियों तलक असनाम भी
अब्र-ए-रहमत बन के छाया दहर पर इस्लाम भी