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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हमारा ख़ून भी सच-मुच का सेहने पर बहा होगा
है आख़िर ज़िंदगी ख़ून अज़-बुन-ए-नाख़ुन बर-आवर-तर
जौन एलिया
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
वो चश्म-ए-पाक हैं क्यूँ ज़ीनत-ए-बर-गुस्तवाँ देखे
नज़र आती है जिस को मर्द-ए-ग़ाज़ी की जिगर-ताबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हम कि ठहरे अजनबी इतनी मुदारातों के बा'द
फिर बनेंगे आश्ना कितनी मुलाक़ातों के बा'द
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
गुलशन-ए-याद में गर आज दम-ए-बाद-ए-सबा
फिर से चाहे कि गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो