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नज़्म
हम ने इन आली बिनाओं से किया अक्सर सवाल
आश्कारा जिन से उन के बानियों का है जलाल
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
वो बर्फ़-बारियाँ हुईं कि प्यास ख़ुद ही बुझ गई
मैं साग़रों को क्या करूँ कि प्यास की तलाश है
आमिर उस्मानी
नज़्म
बरहना पाँव जलती रेत यख़-बस्ता हवाओं में
गुरेज़ाँ बस्तियों से मदरसों से ख़ानक़ाहों में
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मुझे तुम अपनी बाँहों में जकड़ लो और मैं तुम को
किसी भी दिल-कुशा जज़्बे से यकसर ना-शनासाना
जौन एलिया
नज़्म
कभी जो आवारा-ए-जुनूँ थे वो बस्तियों में फिर आ बसेंगे
बरहना-पाई वही रहेगी मगर नया ख़ारज़ार होगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
करती है क्यूँ शराब ख़िरद-बारियाँ न पूछ
बे-होशियों में क्यूँ है ये हुश्यारियाँ न पूछ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
थकी थकी सी फ़ज़ा में वो ज़िंदगी का उतार
हुआ की बंसियाँ बंसवाड़ियों में बजती हुईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
क्या बाग़ियों की आतिश-ए-दिल सर्द हो गई
क्या सरकशों का जज़्बा-ए-पिनहां चला गया