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नज़्म
शाहिद-ए-बज़्म-ए-सुख़न नाज़ूरा-ए-मअ'नी-तराज़
ऐ ख़ुदा-ए-रेख़्ता पैग़मबर-ए-सोज़-अो-गुदाज़
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
बज़्म-ए-मातम तो नहीं बज़्म-ए-सुख़न है 'हाली'
याँ मुनासिब नहीं रो रो के रुलाना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
बज़्म-ए-मातम तो नहीं बज़्म-ए-सुख़न है 'हाली'
याँ मुनासिब नहीं रो रो के रुलाना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
था सरापा रूह तू बज़्म-ए-सुख़न पैकर तिरा
ज़ेब-ए-महफ़िल भी रहा महफ़िल से पिन्हाँ भी रहा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जब किसी बज़्म-ए-सुख़न में शे'र पढ़ता है कोई
इक तरफ़ बैठा हुआ तसहीह फ़रमाता हूँ मैं
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
ऐ अदब ना-आश्ना ये भी नहीं तुझ को ख़याल
नंग है बज़्म-ए-सुख़न में मदरसे की क़ील-ओ-क़ाल
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हर इक बज़्म-ए-सुख़न में गो मुझे बुलवाया जाता है
जो हैं बे-ज़ौक़ उन को भी मुझे सुनवाया जाता है
असद जाफ़री
नज़्म
आज भी साज़ से मिरे गर्मी-ए-बज़्म-ए-सर-कशी
आज भी आतिश-ए-सुख़न शो'ला-फ़िशाँ शरर-फ़िशाँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अहवाल-ए-बज़्म-ए-गुलशन ऐ नामा-बर सुनाना
वो दास्ताँ है दिलकश रंगीं है वो फ़साना
ख़ुशी मोहम्मद नाज़िर
नज़्म
हमारी बज़्म-ए-अदब का है जश्न-ए-सालाना
जली है शम्-ए-सुख़न रक़्स में है परवाना