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नज़्म
वो जिन्हें ताब-ए-गिराँ-बारी-ए-अय्याम नहीं
उन की पलकों पे शब ओ रोज़ को हल्का कर दे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
वो हज़र बे-बर्ग-ओ-सामाँ वो सफ़र बे-संग-ओ-मील
वो नुमूद-ए-अख़्तर-ए-सीमाब-पा हंगाम-ए-सुब्ह
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस्म की एक एक बोटी गोश्त वाला ले गया
तन में बाक़ी थी जो चर्बी घी का प्याला ले गया
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
इस ज़ियाँ-ख़ाने में कोई मिल्लत-ए-गर्दूं-वक़ार
रह नहीं सकती अबद तक बार-ए-दोश-ए-रोज़गार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
एक नया सूरज चमका है एक अनोखी ज़ौ-बारी है
ख़त्म हुई अफ़राद की शाही अब जम्हूर की सालारी है