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नज़्म
अहल-ए-हक़ रोशन-नज़र हैं अहल-ए-बातिन कोर हैं
ये तो हैं अक़वाल उन क़ौमों के जो कमज़ोर हैं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
संग-ए-तुर्बत है मिरा गिरवीदा-ए-तक़रीर देख
चश्म-ए-बातिन से ज़रा इस लौह की तहरीर देख
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुझे शिकवा नहीं उन पाक बातिन नुक्ता-चीनों से
लब-ए-मोजिज़-नुमा ने जिन के मुझ पर आग बरसाई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मेरे बातिन में मुसलसल तैरती है ऊँघती दुनिया सराबों की
नफ़ी सारे हिसाबों की
राजेन्द्र मनचंदा बानी
नज़्म
इन दिनों ये हालत है मेरी ख़्वाब-ए-हस्ती में
फिर रहा हूँ मैं जैसे इक ख़राब बस्ती में
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
तेरा ज़ाहिर ख़ुशनुमा है तेरा बातिन है सियाह
हर अदा तेरी मुकम्मल दावत-ए-जुर्म-ओ-गुनाह