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नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
आरज़ी परतव है जिस का ग़ुंचा-ओ-गुल से अयाँ
उस बहार-ए-जाँ-फ़ज़ा ही की तमन्ना क्यों न हो
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
ख़्वाह अस्कंदर-ओ-जम हों कि गदायान-ए-ज़लील
जामा-ए-‘अक़्ल से फ़ितरत नहीं होती तब्दील