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नज़्म
किताब-ए-मिल्लत-ए-बैज़ा की फिर शीराज़ा-बंदी है
ये शाख़-ए-हाशमी करने को है फिर बर्ग-ओ-बर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मोर-ए-बे-पर हाजते पेश-ए-सुलैमाने मबर
रब्त-ओ-ज़ब्त-ए-मिल्लत-ए-बैज़ा है मशरिक़ की नजात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
किस से कहूँ कि ज़हर है मेरे लिए मय-ए-हयात
कोहना है बज़्म-ए-कायनात ताज़ा हैं मेरे वारदात!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मेरी ने'मत मेरी दौलत है वही इक मेहरबाँ
बाइस-ए-रहमत है वो मेरे लिए जन्नत-निशाँ
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
सर-ब-कफ़ हिन्द के जाँ-बाज़-ए-वतन लड़ते हैं
तेग़-ए-नौ ले सफ़-ए-दुश्मन में घुसे पड़ते हैं
बर्क़ देहलवी
नज़्म
कभी न रोका था हम को सूरज के चोबदारों ने क़स्र-ए-बैज़ा के दाख़िले से
वही तो हम हैं
अली अकबर नातिक़
नज़्म
काफ़ी की प्याली को लबों तक लाएँ तो कैसे लाएँ
बैरे तक से आँख मिला कर बात जो न कर पाएँ