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नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
मेरी ख़ातिर इस बुढ़ापे में भी अपने हाथ से
दादी अमाँ ने पकाईं बाजरे की रोटियाँ
अलीम अख़्तर मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
मैं उस आँख की झील में तैरते सब्ज़ बजरे
की दर्ज़ों से रिसते हुए गर्म सय्याल सोने की बूंदों
वज़ीर आग़ा
नज़्म
क्या कहा बहर-ए-मुसलमाँ है फ़क़त वादा-ए-हूर
शिकवा बेजा भी करे कोई तो लाज़िम है शुऊर