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नज़्म
वो हवा में सैकड़ों जंगी दुहल बजते हुए
वो बिगुल की जाँ-फ़ज़ाँ आवाज़ लहराती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दफ़ बजते हैं सब हँसते हैं और धूम है बिल्कुल
होली की ख़ुशी में तो न कर हम से तग़ाफ़ुल
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हवा से पत्तों के बजते हैं ताल और मिर्दंग
तमाम बाग़ में खेलें हैं होली गुल के संग
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जब जेब में पैसे बजते हैं जब पेट में रोटी होती है
उस वक़्त ये ज़र्रा हीरा है उस वक़्त ये शबनम मोती है
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
यहाँ पिछले पहर शबनम के आँसू रोज़ बहते हैं
शबें आ कर गुज़र जाती हैं शमएँ तक नहीं जलतीं
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
क़यामत की घड़ी है इंक़िलाबी सूर बजते हैं
कहीं बिजली कड़कती है कहीं बादल गरजते हैं