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नज़्म
कल कोई मुझ को याद करे क्यूँ कोई मुझ को याद करे
मसरूफ़ ज़माना मेरे लिए क्यूँ वक़्त अपना बर्बाद करे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हर शाम यहाँ शाम-ए-वीराँ आसेब-ज़दा रस्ते गलियाँ
जिस शहर की धुन में निकले थे वो शहर दिल-ए-बर्बाद कहाँ
हबीब जालिब
नज़्म
दौलत के फ़रेबी बंदों का ये किब्र और नख़वत मिट जाए
बर्बाद वतन के महलों से ग़ैरों की हुकूमत मिट जाए
आमिर उस्मानी
नज़्म
मेरे जाम ओ मीना ओ गुल-दाँ के रेज़े मिले हैं
कि जैसे वो इस शहर-ए-बर्बाद का हाफ़िज़ा हों
नून मीम राशिद
नज़्म
बद-बख़्त फ़ज़ाएँ किस की हैं बरबाद नशेमन किस के हैं
कुछ हम भी सुनें हम को भी सुना
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये बात अच्छी नहीं होती ये बात अच्छी नहीं होती
हमें बेकस समझ कर आप क्यूँ बर्बाद करते हैं
राम प्रसाद बिस्मिल
नज़्म
तेरे आदा ने किया एक फ़िलिस्तीं बर्बाद
मेरे ज़ख़्मों ने किए कितने फ़िलिस्तीं आबाद
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अबू-लहब इक शब-ए-ज़फ़ाफ़-ए-अबू-लहब का जला
फफूला ख़याल की रेत का बगूला वो इश्क़-ए-बर्बाद