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नज़्म
'इशक़-ओ-मस्ती की ब-आहंग-ए-‘ख़याम'-ओ-'हाफ़िज़'
साज़-ए-उर्दू से न निकलेगी सदा तेरे बा'द
बिस्मिल सईदी
नज़्म
दिलों की धड़कनों का सर्द आहंग मुसलसल बे-सदा बेकल
ख़मोशी नींद में है शोर को आवाज़ देती है
मोहम्मद अज़ीम
नज़्म
जवानी की अँधेरी रात है ज़ुल्मत का तूफ़ाँ है
मिरी राहों से नूर-ए-माह-ओ-अंजुम तक गुरेज़ाँ है