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नज़्म
बहर-ए-हस्ती ले रहा था बे-दरेग़ अंगड़ाइयाँ
थेम्स की अमवाज जमुना से हुई थीं हम-कनार
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
शराफ़त बे-ज़बाँ फ़ितरत के दुख की चारागर होती
न होती आरज़ू नैरंग-ए--हस्ती की तमाशाई
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
बे-टिकट ख़त्म हुआ मंज़िल-ए-हस्ती का सफ़र
आज की ताज़ा ख़बर आज की ताज़ा ख़बर आज की ताज़ा ख़बर
सरपट लखनवी
नज़्म
बे-जान हो जब नक़्श-ए-हस्ती तस्वीर-ए-तमन्ना क्या बोले
ताराज के ख़ूनी पंजे में तहज़ीब की मीना क्या बोले
नुशूर वाहिदी
नज़्म
रौशन न सितारे थे ऊपर वीरान फ़लक की बस्ती थी
लाला न ज़मीं पर खिलता था बे-रंग निगार-ए-हस्ती थी
अमीर औरंगाबादी
नज़्म
अपने हम-जिंसों की बे-मेहरी से मायूस-ओ-मलूल
सफ़्हा-ए-हस्ती पर इक सत्र-ए-ग़लत हर्फ़-ए-फ़ुज़ूल
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
राज़-ए-हस्ती एक दिन होगा ऐ 'मंशा' बे-नक़ाब
शर्त ये है हम निगाह-ए-बा-सफ़ा पैदा करें
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
नज़्म
सफ़्हा-ए-हस्ती से मिट जाएगा नाम-ए-ज़ुल्म-ओ-जब्र
अहल-ए-इस्तिब्दाद सब बे-दस्त-ओ-पा जाएँगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
हस्ती-ओ-नीस्ती के बर्ज़ख़ में पा-ब-गुल हैं
हमारे दिन-रात इसी दरा-ए-ज़मान वक़्फ़े से मुत्तसिल हैं