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नज़्म
जावेद अनवर
नज़्म
कि दिल में अइज़्ज़ा की अम्वात की ख़्वाहिशें भी दबी हैं
कई बे-गुनह गर्दनें उँगलियों में फँसी हैं
ग़ज़नफ़र
नज़्म
गरचे बिल्कुल बे-गुनह था हो गया लेकिन वज़ीर
यानी इक झोंका जो आया बुझ गई शम्-ए-ज़मीर
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
क्या जाने किस ख़याल में गुम थी वो बे-गुनाह
नूर-ए-नज़र ये दीदा-ए-हसरत से की निगाह
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
अनवर महमूद खालिद
नज़्म
फ़रोग़-ए-चश्म है तस्कीन-ए-दिल है बे-गुमाँ उर्दू
हर इक आलम में है गोया बहार-ए-गुल-फ़िशाँ उर्दू