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नज़्म
ग़रीबों मुफ़लिसों को बे-कसों को बे-सहारों को
सिसकती नाज़नीनों को तड़पते नौ-जवानों को
साहिर लुधियानवी
नज़्म
बे-कसों बे-सहारों को सब्र-ओ-क़नाअत की तल्क़ीन करते रहें
गर यही ज़िंदगी है तो मेरे ख़ुदा
आरिफ़ अख़्तर नक़वी
नज़्म
उस के नाज़ुक क़ल्ब में मिलता है मज़लूमों का दर्द
बे-कसों का है वो हामी बे-ज़बानों की ज़बाँ
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
आ, और बिगुल का नग़्मा-ए-''जाँ-आफ़रीं'' भी सुन
आ, बे-कसों का नाला-ए-अंदोह-गीं भी सुन
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दिल है पहलू में तो पैदा शेवा-ए-तुरकाना कर
जौर हफ़्त-अफ़्लाक के होते रहें परवा न कर
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
चारासाज़-ओ-दस्तगीर-ए-बे-कसाँ कोई न था
कौन होता बे नवाओं का भला मातम-कुनाँ