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नज़्म
शुक्र शिकवे को किया हुस्न-ए-अदा से तू ने
हम-सुख़न कर दिया बंदों को ख़ुदा से तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इक रोज़ मगर बरखा-रुत में वो भादों थी या सावन था
दीवार पे बीच समुंदर के ये देखने वालों ने देखा
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
सब पट्टा तोड़ के भागेंगे मुँह देख अजल के भालों के
क्या डब्बे मोती हीरों के क्या ढेर ख़ज़ाने मालों के
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
सुर्ख़ होंटों पर शरारत के किसी लम्हे का अक्स
रेशमीं बाँहों में चूड़ी की कभी मद्धम खनक
परवीन शाकिर
नज़्म
मुझे तुम अपनी बाँहों में जकड़ लो और मैं तुम को
किसी भी दिल-कुशा जज़्बे से यकसर ना-शनासाना