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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
पुन क्या है जो भी किसी ने उस को तो वो मिलेगा
बाग़ में उस के जीवन के वो बन कर फूल खुलेगा
मोहम्मद हाज़िम हस्सान
नज़्म
दिल को बद-ज़न न कर ऐ हादिम-ए-लज़्ज़ात के सैद
जान-ए-शीरीं का नहीं कुछ भी मज़ा तेरे बाद
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
हमारी दस्त-बाफ़ी भा गई है ज़ौक़ वालों को
बहुत मर्ग़ूब हैं कपड़े हमारे मह-जमालों को
बनो ताहिरा सईद
नज़्म
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश-क़दमी से