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नज़्म
तू बधिया लादे बैल भरे जो पूरब पच्छम जावेगा
या सूद बढ़ा कर लावेगा या टूटा घाटा पावेगा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मैं तेरे रस-भरे होंटों को प्यारी चूम सकता हूँ
मगर मैं तेरे दिल पर आह क़ब्ज़ा पा नहीं सकता
गोपाल मित्तल
नज़्म
वो तज़ब्ज़ुब कि जिसे कम-सिन-ओ-कम-ख़्वाब निगाहों के भरोसे ने
गुलाब और चमेली की महक बख़्शी थी
अय्यूब ख़ावर
नज़्म
इन से मिलिए राम भरोसे जैसे फ़िल्मी हीरो हैं
सालाना एग्ज़ाम में इन के हर पर्चे में ज़ीरो हैं
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
जिन सवाबों के भरोसे पे है ज़िंदा वाइज़
हमें शायद वो गुनाहों के अज़ाबों में मिलें
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
नज़्म
तिरे दिल की तमन्ना भी करूँ तो किस भरोसे पर
मैं ख़ुद दरगाह में तेरी ये तोहफ़ा ला नहीं सकता
गोपाल मित्तल
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
हाँ उम्र का साथ निभाने के थे अहद बहुत पैमान बहुत
वो जिन पे भरोसा करने में कुछ सूद नहीं नुक़सान बहुत