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नज़्म
गुनाह के तुंद-ओ-तेज़ शोलों से रूह मेरी भड़क रही थी
हवस की सुनसान वादियों में मिरी जवानी भटक रही थी
नून मीम राशिद
नज़्म
अब हलक़ में उन के जो खाया अटक कर जाएगा
ग़ैर-मुल्कों में न सरमाया भटक कर जाएगा