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नज़्म
जब दिन ढल जाता है, सूरज धरती की ओट में हो जाता है
और भिड़ों के छत्ते जैसी भिन-भिन
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
छोटी छोटी चीज़ें जैसे शहद की मक्खी की भिन भिन
चिड़ियों की चूँ चूँ कव्वों का एक इक तिनका चुनना
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
फ़ाक़ों से है बे-होशी सी हर गाम पे चक्कर आते हैं
पैवंद-भरी कोहना सी रिदा पैवंद भी उधड़े जाते हैं
सरीर काबिरी
नज़्म
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश-क़दमी से