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नज़्म
क्या रेनी ख़ंदक़ रन्द बड़े क्या ब्रिज कंगूरा अनमोला
गढ़ कोट रहकला तोप क़िला क्या शीशा दारू और गोला
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
द्वारका-जी का बसाना तो मुबारक लेकिन
कर न दें ब्रिज की गलियों को फ़रामोश कहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
जिसे ख़याली क़िलों के ब्रिज गिराने का बड़ा तजरबा है
इस की ना-बूदी मेरी एक चुप के फ़ासले पर है
अहमद जावेद
नज़्म
ब्रिज-भाषा में है जो लज़्ज़त वो लज़्ज़त इस में है
साफ़ क़ंद-ए-फ़ारसी की भी हलावत इस में है
सफ़ी लखनवी
नज़्म
कृष्ण की आज याद-ए-रफ़्ता महफ़िल-ए-ज़िंदा करो
ब्रिज-ओ-गोकुल की बुझी शम्ओं' को ताबिंदा करो
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
ये वो जमुना है कि राधा सी हसीं ने मुद्दतों
ब्रिज की इक पाक-दामन नाज़नीं ने मुद्दतों
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
होंटों से दुआ ही फूटती लेकिन हमारी तीरा रोज़ी रात के हर ब्रिज पर
बेदार और चौकस थी
मोहम्मद इज़हारुल हक़
नज़्म
रुख़्सत हुआ वो बाप से ले कर ख़ुदा का नाम
राह-ए-वफ़ा की मंज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
ऐ ख़ाक-ए-हिंद तेरी अज़्मत में क्या गुमाँ है
दरिया-ए-फ़ैज़-ए-क़ुदरत तेरे लिए रवाँ है
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
तुम्हारी आँख में जो ख़्वाब सोए हैं वो मेरे हैं
तुम्हारे अश्क ने जो बीज बोए हैं वो मेरे हैं
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
ये बीज अगर डालोगे तुम दिल से उसे पा लोगे तुम
देखोगे फिर इस का मज़ा मेहनत करो मेहनत करो