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नज़्म
दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो बर्फ़-बारियाँ हुईं कि प्यास ख़ुद ही बुझ गई
मैं साग़रों को क्या करूँ कि प्यास की तलाश है
आमिर उस्मानी
नज़्म
बुझ चुके हैं मिरे सीने में मोहब्बत के कँवल
अब तिरे हुस्न-ए-पशीमाँ से मुझे क्या लेना
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
ज़ेर-ए-लब अर्ज़ ओ समा में बाहमी गुफ़्त-ओ-शुनूद
मिशअल-ए-गर्दूं के बुझ जाने से इक हल्का सा दूद
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हरीम-ए-इश्क़ की शम-ए-दरख़्शाँ बुझ के रह जाए
मबादा अजनबी दुनिया की ज़ुल्मत घेर ले तुझ को
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
फ़ज़ा में बुझ गए उड़ उड़ के जुगनुओं के शरार
कुछ और तारों की आँखों का बढ़ चला है ख़ुमार
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
बुझ गया रौशन सवेरा माँ तिरे जाने के बा'द
छा गया हर सू अंधेरा माँ तिरे जाने के बा'द