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नज़्म
इसी के बीच में है एक पेड़ पीपल का
सुना है मैं ने बुज़ुर्गों से ये कि उम्र उस की
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
रेज़े अल्मास के तेरे ख़स-ओ-ख़ाशाक में हैं
हड्डियाँ अपने बुज़ुर्गों की तिरी ख़ाक में हैं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
थी बुज़ुर्गों की जो बनियाइन वो बनिया ले गया
घर में जो गाढ़ी कमाई थी वो गाढ़ा ले गया
जोश मलीहाबादी
नज़्म
सहाबा के बुज़ुर्गों के मुझे क़िस्से सुनाती हैं
हदीसें भी सुनाती उन का मतलब भी बताती हैं
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
नज़्म
बू-ए-नख़वत से नहीं याँ के गुलों को सरोकार
है बुज़ुर्गों का अदब इन की जवानी का सिंगार
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
ख़ुदा उस क़ौम को इज़्ज़त नहीं देता ज़माने में
जिसे क़ौमी बुज़ुर्गों का अदब करना नहीं आता
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
किसी ने भी ख़ूँ-बहा न माँगा
कि शहर-ए-मेहनत के सब बुज़ुर्गों ने दरगुज़र का सबक़ दिया था
सलीम कौसर
नज़्म
बुज़ुर्गों से विर्से में हम को मिले थे
उन्हें पढ़ के हम सब ये महसूस करने लगे