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नज़्म
चमक तारे से माँगी चाँद से दाग़-ए-जिगर माँगा
उड़ाई तीरगी थोड़ी सी शब की ज़ुल्फ़-ए-बरहम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कलाई में सुनहरी चूड़ियाँ खनकाई जाती हैं
चटक उठती हों जैसे नर्म कलियाँ शाख़-सारों पर
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
चटक फूलों की रंग-ओ-बू पे इठलाते हुए दालान
हँसें हैं पर तुम्हारे बिन मेरे जी को नहीं भाते
पुष्पराज यादव
नज़्म
नैना आदिल
नज़्म
कलियाँ भी खिल उठी हैं कैसी चटक चटक कर
आपस में खेलती हैं शाख़ें लचक लचक कर
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
कुछ दिन के बिछड़े हुए साथी हँस के गले जब मिलते हैं
चाँदनी रातों में ग़ुंचे जब चटक चटक कर खिलते हैं