aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "chhaap"
जिस पे पहले भी कई अहद-ए-वफ़ा टूटे हैंइसी दो-राहे पे चुप-चाप खड़ा रह जाऊँ
मुमकिन है कोई वहम था, मुमकिन है सुना होगलियों में किसी चाप का इक आख़िरी फेरा
तो उन को होगा अब चुप-चाप बहनाकिसी का हुक्म है
रात सुनसान थी बोझल थीं फ़ज़ा की साँसेंरूह पर छाए थे बे-नाम ग़मों के साए
हर एक दर्द वो चुप-चाप ख़ुद पे सहता हैतमाम उम्र वो अपनों से कट के रहता है
तक़दीर के क़दमों पर सर रख के पड़े रहनाताईद-ए-सितमगर है चुप रह के सितम सहना
वो चुप-चाप थे आगे पीछे रवाँख़ुदा जाने जाना था उन को कहाँ
ये बे-ख़ुदी-ए-मुसर्रत ये वालिहाना रक़्सये ताल-सम ये छमा-छम कि कान बजते हैं
रात चुप-चाप दबे पाँव चले जाती हैरात ख़ामोश है रोती नहीं हँसती भी नहीं
मेज़ चुप-चाप घड़ी बंद किताबें ख़ामोशअपने कमरे की उदासी पे तरस आता है
लेकिन अब्बा ने चुप चापखोला बॉक्स को उठ कर आप
ढूँढता है जो ख़राबी के बहाने कब सेचाक-ए-हर-बाम हर इक दर का दम-ए-आख़िर है
पुर-हौल फ़ज़ा के वहम लिएक़दमों की चाप के साथ चले
सवारियों के बड़े घुंघरूओं की झंकारेंखड़ा है ओस में चुप-चाप हर सिंगार का पेड़
कोई भी रुत हो उस की छबफ़ज़ा का रंग-रूप थी
जैसे लफ़्ज़ों को गहन लग जाएजैसे रूठे हुए रस्तों के मुसाफ़िर चुप-चाप
तेरी चुप-चाप निगाहों को सुलगते पा करमेरी बेज़ार तबीअत को भी प्यार आ ही गया
छप गए हैं मिरी नज़रों से ख़द-ओ-ख़ाल-ए-हयातहर तरफ़ अब्र घनेरा नज़र आता है मुझे
हुआ इक दिया बन गई जिस की रुकती हुई और झिझकती हुई हर किरन बे-सदा क़हक़हा हैमगर मेरे कानों ने कैसे उसे सुन लिया एक आँधी चली चल के मिट
ले आया है यूँ बिन पूछे अपने आपऐनक के बर्फ़ीले शीशों से छनती नज़रों की चाप
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