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नज़्म
में जो बे-मर्ज़ी निकल आया तो डाँटा है बहुत
मौलवी ने मुख़्तलिफ़ ख़ानों में बाँटा है बहुत
खालिद इरफ़ान
नज़्म
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
हर मंज़िल में अब साथ तिरे ये जितना डेरा-डांडा है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
आब-ओ-गिल तेरी हरारत से जहान-ए-सोज़-अो-साज़़
अब्लह-ए-जन्नत तिरी तालीम से दाना-ए-कार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुज़्तरिब है तू कि तेरा दिल नहीं दाना-ए-राज़
गुफ़्त रूमी हर बना-ए-कुहना कि-आबादाँ कुनंद