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नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
कलेजा फुंक रहा है और ज़बाँ कहने से आरी है
बताऊँ क्या तुम्हें क्या चीज़ ये सरमाया-दारी है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हर दौर में सर होते हैं क़स्र-ए-जम-ओ-दारा
हर अहद में दीवार-ए-सितम होती है तस्ख़ीर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ढल के लहरों में कई गीत सुनाई मुझे देते हैं मगर
उन में इक जोश है बेदाद का फ़रियाद का इक अक्स-ए-दराज़