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नज़्म
धूप ने इंसानी ज़ेहनों में अंगारे दहकाए हैं
धूप ने फ़िक्र-ओ-नज़र में जैसे शो'ले से भड़काए हैं
शबाना नज़ीर
नज़्म
फ़ाक़ों की चिताओं पर जिस दिन इंसाँ न जलाए जाएँगे
सीनों के दहकते दोज़ख़ में अरमाँ न जलाए जाएँगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सीने के दहकते दोज़ख़ में अरमाँ न जलाए जाएँगे
ये नरक से भी गंदी दुनिया जब स्वर्ग बताई जाएगी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
गर्मी-ए-रुख़्सार से दहकी हुई ठंडी हवा
नर्म ज़ुल्फ़ों से मुलाएम उँगलियों की छेड़-छाड़
परवीन शाकिर
नज़्म
ज़िंदा रहने के लिए इंसान को कुछ और भी दरकार है
और इस कुछ और भी का तज़्किरा भी जुर्म है
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
आमिर उस्मानी
नज़्म
भूखों की नज़र में बिजली है तोपों के दहाने ठंडे हैं
तक़दीर के लब को जुम्बिश है दम तोड़ रही हैं तदबीरें
जोश मलीहाबादी
नज़्म
दिल के बुझते हुए अँगारे को दहकाते हुए
ज़ुल्फ़-दर-ज़ुल्फ़ बिखर जाएगा फिर रात का रंग
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
हल पे दहक़ाँ के चमकती हैं शफ़क़ की सुर्ख़ियाँ
और दहक़ाँ सर झुकाए घर की जानिब है रवाँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
इक दफ़्तर-ए-मज़ालिम-ए-चर्ख़-ए-कुहन खुला
वा था दहान-ए-ज़ख़्म कि बाब-ए-सुख़न खुला