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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मैं ने तोड़ा मस्जिद-ओ-दैर-ओ-कलीसा का फ़ुसूँ
मैं ने नादारों को सिखलाया सबक़ तक़दीर का
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
चराग़-ए-दैर फ़ानूस-ए-हरम क़िंदील-ए-रहबानी
ये सब हैं मुद्दतों से बे-नियाज़-ए-नूर-ए-इर्फ़ानी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तेरे ही नग़्मों से बे-ख़ुद आबिद-ए-शब-ज़िंदा-दार
बुलबुलें नग़्मा-सरा हैं तेरी ही तक़लीद में
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुझे शिकवा नहीं दैर-ओ-हरम के आस्तानों से
वो जिन के दर पे की है मुद्दतों मैं ने जबीं-साई