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नज़्म
और उलझी हुई मौहूम सी दरबाँ की तलाश
दश्त ओ ज़िंदाँ की हवस चाक-ए-गिरेबाँ की तलाश
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
पनाहें हुस्न ने पाईं सियहकारी के दामन में
वफ़ादारी हुई रू-पोश नादारी के दामन में
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
पर्बत की चोटियाँ हैं दरबाँ हमारे दर की
दामन में जिस के पिन्हाँ कानें हैं सीम-ओ-ज़र की
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
चीनी के दारोग़ा जी और दफ़्ती के दरबान
लाई हैं अपने साथ हमारे वास्ते ये सामान
अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी
नज़्म
कुत्ता अपनी खेती बाड़ी और घर का दरबान हुआ है
जानवरों का मुल्कों मुल्कों रोज़ाना गुन-गान हुआ है
मतीन अचलपुरी
नज़्म
मिट्टी के दरबान का पहरा सिरहाने बिठलाते थे
क्या पुर्वा के ठंडे झोंके उन के देस नहीं जाते
रिज़वान सईद
नज़्म
पर्बत की चोटियाँ हैं दरबाँ हमारे दर की
दामन में जिस के पिन्हाँ कानें हैं सीम-ओ-ज़र की
बाबू मुर्ली धर
नज़्म
साज़ बजते हैं मोहब्बत के दरून-ए-महफ़िल
तू दर-ए-यार के दरबाँ की शक़ावत को न देख