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नज़्म
इक दफ़्तर-ए-मज़ालिम-ए-चर्ख़-ए-कुहन खुला
वा था दहान-ए-ज़ख़्म कि बाब-ए-सुख़न खुला
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
आज भी है लिखी हुई सुर्ख़ हुरूफ़ में 'मजाज़'
दफ़्तर-ए-शहर-ए-यार में मेरे जुनूँ की दास्ताँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
फिर दफ़्तर-ए-रक़्स-ओ-रंग खिला फिर धूम मचाई होली ने
फिर ढोल बजा फिर रंग उड़ा फिर धूम मचाई होली ने
अर्श मलसियानी
नज़्म
दोस्त मिला था तुझ को कैसा हैफ़ इतना भी याद नहीं
जान फ़िदा करता था जिस पर दिल में उस की याद नहीं
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
मुसहफ़-ए-रू-ए-किताबी रू-कश-ए-नाज़-ए-गुलाब
और बन जाए ये नेमत दफ़्तर-ए-इल्म-ए-हिसाब
जोश मलीहाबादी
नज़्म
सहर के पास हैं मंसूख़ शर्तें सुल्ह-नामे की
सबा दर्स-ए-ज़ियाँ-आमोज़ की तफ़्सील रखती है